JyotiPunj | Sanskrit

JyotiPunj | Sanskrit

Srujan Jha
May 2, 2021
  • 4.1 and up

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JyotiPunj | Sanskrit 정보

यह लघु कोश ज्योतिष शास्र के जिज्ञासुओं के लिए एक पथप्रदर्शक का कार्य करेगा

यह लघु कोश ज्योतिष शास्त्र के जिज्ञासुओं के लिए एक पथप्रदर्शक का कार्य करेगा। सामान्यतः व्यवहार में आने वाले पारिभाषिकों का यह सङ्कलन ज्योतिष शास्त्र के छात्रों को बहुत पसन्द आया इसलिए इसका अतिशीघ्र ही पुनर्मुद्रण कराना पड़ा है। यह कार्य ज्योतिष शास्त्र में इस विधा के ग्रन्थ प्रणयन का श्रीगणेश मात्र है।

इसका पुनर्मुद्रण के बजाय इसका द्वितीय संस्करण प्रकाश में लाया जा सकता था लेकिन सारा प्रयास ज्योतिषशास्त्र बृहत्कोश में लगा है। यथाशीघ्र यह बृहत्कोश पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया जा रहा है। जिसमें ज्योतिष शास्त्र के सभी स्कन्धों के पारिभाषिकों के शब्दार्थ एवं आवश्यकतानुसार लघु निबन्ध भी होंगे। इसकी एक और विशेषता होगी कि इसमें सम्प्रति उपलब्ध ग्रन्थ और ग्रन्थकारों का परिचय भी रहेगा।

ज्योतिष शास्त्र का स्वरूप इतना विशाल है कि इनके परिधि का परिगणन यदि असंभव नहीं तो कठिन अवश्य है। जैसा कि हम जानते हैं कि प्राचीनकाल से विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अध्ययन दो विषयों में अन्तर्भूत रहा। जैसे-आयुर्वेद और ज्योतिष। चिकित्सा सम्बन्धी कार्य आयुर्वेद का विषय रहा और शेष सभी प्रकार के तकनीकि कार्य ज्योतिष शास्त्र का विषय रहा। इतने गुरुतर दायित्व का निर्वहन करने वाले शास्त्र में समय समय पर देश, काल और पात्र का प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही है। परिणामतः इस शास्त्र में नये-नये पारिभाषिक शब्दों का सनिवेष होता गया।

कालक्रमानुसार अध्येताओं की पात्रताओं में भी अन्तर आता गया। यद्यपि अध्येताओं की संख्या में वृद्धि तो हुई लेकिन अध्येताओं के बहु आयामी होने के कारण समयाभाव के फलस्वरूप उनकी गुणवत्ता का हास होता गया। समय की मांग के कारण विभिन्न वर्गों के ऐसे अध्येता भी इस क्षेत्र में प्रविष्ट हुए जिन्हें इस शास्त्र का पारम्परिक ज्ञान नहीं रहा । इस शास्त्र का सम्बन्ध समाज के शिक्षित, अशिक्षित, धनी या गरीब सभी वर्गों के लोगों से रहा है। इसलिए इसका अध्ययन-अध्यापन संस्कृत भाषा तक सीमित न रहकर अन्य भाषाओं में भी होने लगा। पारम्परिक रूप से संस्कृत माध्यम से इस शास्त्र का अध्ययन करने वाले जिज्ञासुओं के लिए पृथक्तया इस शास्त्र के कोश की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती थी। किन्तु अन्य विषय और भाषाओं के पाठकों की आवश्यकता बार-बार दृष्टिपथ पर आती रही और इस तरह के कोश के निर्माण की इच्छा उत्पन्न होती रही की उसमें भी कोश का कार्य हो ।

मैंने अपने द्वारा किए शब्द चयन आधी-अधूरी सूची को पूर्ण कर फिर से कोश को एक सीमा तक पहुँचाया और स्वतन्त्र रूप से पद्मजा प्रकाशन से इसे प्रकाशित करने का निर्णय लिया। जिस रूप में इसे प्रकाशित करना चाहता था वह नहीं हो पाया है। लेकिन यह कार्य तो अनवरत चलनेवाला है। इसलिए इसे छात्रों के लिए उपयोगी मानकर प्रकाशित कर रहा हूँ। विद्वानों के लिए तो ज्योतिषशास्त्र बृहत्कोश का कार्य अभी आरम्भ किया है। देवता, ऋषि, पितर, ब्राह्मणों और विद्वानों के आशीर्वाद से बृहत्कोश भी पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने के लिए मैं प्रयत्नशील हूँ।

-विनयावनत

सर्वनारायण झा

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