सुन्दरकाण्ड
关于सुन्दरकाण्ड
Sunderknd |阿贾伊蒙德拉摹先生的声音七
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सुंदरकण्ड | श्री अजय मुंद्र जी की आवाज के सात
॥श्रीहरि:॥
अरथ न धरम न काम रुचि गति न चहऊँ निरबान । जनम जनम रति राम पद यह बरदानु न आन ॥
भरतजी महाराज कहते है प्रयाग राज से की मांगू – मैं अपने क्षत्रिय धर्मं का त्याग करके, आपसे माँगता हूँ, माँगना क्षत्रिय का काम नहीं है। पर आर्त क्या कुकर्म नहीं करता? आज कुकर्म कर रहा हूँ -
हे प्रयाग राज –
सीता राम चरण रति मोरे । अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें ॥
ये चौपाई, इसका जप करो । इसका पाठ करो । सम्पुट करो, रामायण के साथ में । समझे ।
जानहुँ राम कुटिल करि मोहि । लोग कहउ गुर साहिब द्रोही ॥
सीता राम चरण रति मोरे । अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें ॥
ये चौपाई को पढ़ते रहो । रामायण में सम्पुट लगाकर कर पढ़ो । ये भरतजी के वचन है – प्रयाग राज से कह रह है । रामजी मेरे को कुटिल समझे और लोग भी कहे कि गुरु और साहिब का वैरी है । गुरु मेरे को कहे कि अपने मालिक का द्रोह करता है । ये सब लोग कह दे, मैं सब सुन लूँगा । पर भगवान् के चरणों कि जूती मेरे तो आश्रय है । ऐसे भगवान् को कहो । भीतर में ऐसी लालसा हो कि हे नाथ, हे नाथ – मैं आपको भूलूँ नहीं । स्वर्ग में भेज दो, प्रथ्वी में भेज दो, नरकों में भेज दो – सब स्वीकार – पर आपके चरणों का चिंतन न छूटे । आपके चरणों कि लालसा न छूटे । केवल चरणों को ही चाहता रहूँ । ये मेरी छूटे नहीं । जहाँ भेजो, आपकी मर्जी आये वहाँ जाऊँ । जैसे चाहो वैसे रख दो । सब स्वीकार है – पर हे नाथ अब सुन्दर संदर कमल के शोभा को लज्जित करनेवाले आपके चरण है वो छूटे नहीं । वो याद रहे । एक यही माँगता हूँ, और कुछ नहीं माँगता हूँ । नरकों में भेज दो हमें स्वीकार है, पर आपके चरणों का चिंतन न छूटे । आपके चरना मेरे को प्यारे लगे ।
सब कै ममता ताग बटोरी । मम पद मनहि बाँध बरि डोरी ॥
सब की ममता छोड़ कर के आपके चरणों में मेरी प्रीति बंध जाए । हे नाथ । आप में ही बंध जाए । ऐसी बात है । कितनी बढ़िया बात है । कितनी उत्तम बात है ।
[सम्पुट लगाकर पाठ करें – भरतजी जैसा प्रेमी बनने के लिए]
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