عن वीर
يعبر فيرد حدود ألفازاس ويرتدي الملوك المخمليين.
‘वीर’ की शायरी अल्फ़ाज़ की सरहदों को पार करके अकसर रूहानियत का लिबास पहन लेती है| उनके लफ़्ज़ों में ज़ाहिर होती ख़लिश किसी ना किसी रूप में हम सब ने महसूस की है| हर शेर पढ़ते वक़्त लगता है जैसे इन पन्नों पर अपनी ही कहानी बयाँ है|
ख़यालों की गिरहों को लफ़्ज़ों से खोलना बड़ी शिद्दत का काम है और वीर इसे कुछ ऐसी आसानी से करते हैं, कि पढ़ते वक़्त, कई बार लगता है जैसे अपना ही कोई हिस्सा भीतर से बोल रहा हो|
हर रचना अपने आप में अनोखी है और पढ़ने वाले के ज़हन में उथल-पुथल मचाने का हौसला रखती है| इन रचनाओं में उम्मीद है, दर्द है, सवाल हैं, ज़हनी दिलासे हैं और सोच के कुछ ऐसे सिरे हैं जो एक बार हाथ लगें, तो छूटने का नाम नहीं लेते|
कोई परत उतार कर देखिये, वीर की ख़लिश आपको अपने आप में भी ज़रूर मिलेगी|
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