دربارهی YUGNIRMAN
کارمیان توسط دکتر راجیو میسرا جی توضیح داده شده است
: जीवन की जडीबुटी
जैसे में हमे हर एक शब्द का अर्थ सरलता मिल जाता है वैसे ، वैसे ही गीता में "कर्मयोग" रूपी ज्ञान में समग्र सृष्टि के एक एक जीवमात्र के जीवन उत्त्पन्न हुए उत्त्पन्न हर हर एक प्रश्न तथा संतोषपूर्ण संतोषपूर्ण |
हमे यह प्रश्न होगा कि क्या ये कर्मयोग का ज्ञान कोई जादुई या चमत्कारिक है या कोई पारसमणि है कि छुते ही लोहा सोना कोई पारसमणि है कि छुते ही लोहा सोना रूपांतरित रूपांतरित है है है | ये कहने में जरा भी अतिशयोक्ति नही है कि कर्मयोग सबसे भी अधिक महत्व रखता है | क्योकि जीवन भले ही हम अच्छे से अच्छे डॉक्टर ، इंजीनियर ، वकील ، बिसनेसमेन या किसी क्षेत्र में चाहे कितना ही आगे निकल परन्तु कर्मयोग की सरल समझ या नींव रूपी को जीवन में सरल समझ या नींव रूपी सिद्धांतो जीवन में में अमल में लेंगे आचरण आचरण आचरण आचरण आचरण उतारेंगे तो हमारा कुछ भी बनना सार्थक नहीं होगा ، और वो हमे वास्तविक ख़ुशी नहीं दे सकता | ऐसे सारे उदाहरण हमने दुनिया में है है खुद के क्षेत्र में टॉप पहुँचा हुआ व्यक्ति भी कर्मयोग के ज्ञान अभाव कारण खुद से ही संतुष्ट संतुष्ट होता तो ज्यादातर हताशा हताशा निराशा संतुष्ट नही होता तो जीवन हताशा हताशा निराशा में में कुछ लोग लेते है |
कर्मयोग की सरल सरल जो कोई व्याख्या कह सकते तो वो हमे मिलेगी श्रीमद् गीता के दुसरे के 47 श्लोक जो ، जो शायद भाग्यवश किसी किसी ने अपने जीवन में सुना होगा होगा |
"वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
कर्मफल हेतुर्भु: मा ते संगोत्स्वकर्मणी ||
इसका अर्थ हम जानते है कि कर्म करने में हमारा है अथवा तो कर्म में हम स्वतंत्र है परन्तु फलो हमारा अधिकार है है है | का हेतु स्वयं को नही मानना है यानि कि कर्तापन हमारे अंदर नही लाना
दोस्तो कर्मयोग का चमत्कारिक ज्ञान हमे यही है है कि ख़ुशी ، शांति ، प्रसन्नता वो सब दुसरो ख़ुशी ، शांति ، प्रसन्नता में ही छुपी हुई है | जब हम दुसरो को ये सब यानि कि ख़ुशी ، शांति प्रसन्नता देना सीख जाएँगे तो अपने ही हमे वो सब प्राप्त हो जाएगा | यही मानव जीवन का मुख्य उदेश्य है |
"क्यों व्यर्थ चिंतित हो रहे हो ،
भय में जीवन खो रहे हो
है कर्मयोग का ज्ञान ،
रो-रो के जीवन ढो रहे हो | "
कर्मयोग कहता है कि कर्म करने हमारा अधिकार है परंतु फल पर अधिकार नही है अथवा फल हमे अधिकार मानना नहीं है | फल पर अधिकार न माने ، ये कहने के पीछे एक का कारण यह है कि कभी भी हमारी इच्छानुसार प्राप्त नहीं परंतु परंतु की गुणवता हमारी मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा | इसका अर्थ ये है की कर्म शुरू करने से पहले की आशा या इच्छा रखे रखे फल ، फल की आशा या इच्छा से ही कर्म में जोश आएगा आएगा आएगा | जो फल की आशा या इच्छा रखेंगे तो हमे कर्म करने की दिशा या कितना पुरुषार्थ करना उसका ख्याल ही नहीं आएगा | समजना है कि कर्म शुरू करते समय और कर्म दरम्यान फल की आशा इच्छा को अपना लक्ष्य बनाकर जरुर परंतु कल न रहे कि क्या फल नहीं नहीं मिलेगा रहे कि क्या नहीं नहीं नहीं मिलेगा मिलेगा मिलेगा मिलेगा कब कब मिलेगा मिलेगा मिलेगा |
अभी देखा कि फल हमेशा कर्म की गुणवत्ता के अनुसार आता है | कर्म की गुणवत्ता यानि प्रारब्ध और पुरुषार्थ का
प्रारब्ध X पुरुषार्थ =
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